सती के आंसू गिरने से बना अछरू शक्ति पीठ, औरंगजेब की सेना से की थी ओरक्षा की रक्षा
(अभिषेक रानू) आत्मा और परमात्मा के मध्य पवित्र बंधन यू तो अध्यात्म का विषय है परंतु इसका सबसे सटीक उदाहरण भक्त और भगवान का दिया जाता है, संसार में एक भक्त की पहचान ईश्वर के नाम से ही होती है। वह भक्त अपने त्याग, तप और भक्ति से ईश्वर के चरणों में स्थान पाकर जग में अमर हो जाता है। परंतु क्या आपने ऐसे स्थान के बारे में सुना है जहाँ भगवान को भक्त के नाम से ही पहचाना जाता है ?
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| Orcha's protectar Achhru Mata is known by the name of a devotee |
हम बात कर रहे है मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड स्थित एक ऐसे पवित्र देवी स्थल की जहाँ माता अपने भक्त के नाम से पहचानी जाती है, माता का यह धाम निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर तहसील में स्थित है जो अछरू माता के नामसे जाना जाता है। इस शक्ति पीठ का इतिहास अत्यंत प्राचीन है जिसके संबंध में अनेक विस्मयकारी कथाये और किदवंतिया प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि रामराजा की नगरी ओरक्षा के द्वार पर स्थित इस देवी स्थल के प्रताप के कारण मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना ओरछा पर चढ़ाई नही कर सकी था। ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र धाम में स्थित प्राकृतिक कुण्ड का निर्माण सती माता के आंसू गिरने से हुआ था। उसी से माता प्रगट हुई और आज भी वही कुण्ड मनोकामनायें लेकर आने वाले भक्तों को प्रसाद प्रदान कर उनकी मनोकामनाऐं पूर्ण करता है।
यू तो पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर संसार के समूचे रहस्य जगत जननी माता के इर्द गिर्द ही घूमते है, माता की अद्भुत लीलाओं के अनगिनतत किस्से है जो अत्यंत विस्मयकारी और जगत कल्याण से जुड़े हुए है। संकटों से घिरे अपने भक्तों के बुलावे पर माता ने हर बार अलग-अलग रूपों में प्रगट होकर उन्हें कष्टों से उबारा है, माता की महिमा की इन्ही कथाओं का बखान लोक कथाओं और जनश्रुतियों में देखने को मिलता है। अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण कर उन्हें इतिहास में अमर बनाने की अनोखी यह कहानी माता के एक ऐसे रूप की है जो अपने अनन्य भक्त अछरू के नाम से जानी जाती है। जो एक निर्जन वन प्रदेश में विराजित होकर एक चमत्कारिक कुण्ड से प्रसाद प्रदान कर उसके दरबार में आने वाले भक्तों की मनोकामनाए पूर्ण करती है।
कहाँ है अछरू माता का मंदिर
आस्था और पृकृति चमत्कार का यह केन्द्र मध्यप्रदेश के निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर तहसील से सिर्फ 05 किलोमीटर दूर मढ़िया ग्राम पंचायत में स्थित है, इस पवित्र धाम से रामराजा ओरछा धाम की दूरी सिर्फ 20 किलोमीटर है। कभी यह धार्मिक स्थल ओरछा रियासत के अंतर्गत आता था, और इसे ओरछा का सुरक्षा केन्द्र भी कहा जाता था। यहाँ पहुँचने के लिए टीकमगढ़ की ओर से 59 किलोमीटर दूर झांसी मार्ग से होकर पहुँचते है। पूर्व में यह प्राचीन स्थल एक निर्जन वन में पहाड़ी पर स्थित था, परंतु अब इस स्थान पर एक विशाल मंदिर का निर्माण किया गया है जहाँ माता दुर्गा के नौ रूपों को स्थापित किया गया है। साथ ही इस मंदिर में श्री गणेश जी और भोलेनाथ के भी मंदिर है।
यू तो यहाँ देश के कोने कोने से लोग अपनी मनोकामनायें लेकर आते है परंतु समूचे बुंदेलखण्ड से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या का आंकड़ा लाखों में पहुँच जाता है। इस मंदिर में चौत्र नवरात्रि पर्व पर एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते है।
भक्त अछरू को प्रगट होकर दिये थे माता ने दर्शन
अछरू माता मंदिर और उसके चमत्कारिक कुण्ड को लेकर ग्रामीणों में एक लोककथा प्रचलित है, जो यहाँ के वाशिंदे गौपालकों से जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि लगभग 500 वर्ष पूर्व यह स्थान एक निर्जन वन क्षेत्र था। एक बार के समीपस्थ ग्राम के एक गौपालक अछरू यादव की भैंस गुम हो गई, जिन्हें ढूढ़ता हुआ वह परेशान होकर भटकते हुए इस?स्थान पर पहुँच गया। कई दिन से परेशान अछरू प्यास से व्याकुल होकर एक पत्थर पर बैठकर ईश्वर से अपने कष्ट को हरने की प्रार्थना कर रहा था। उसी दौरान उसके मन करूण पुकार सुनकर पत्थर के टीले स्थत एक कुण्ड से जगतजननी माता प्रगट हुई और उससे कुण्ड का पानी पीने को कहा।
निर्जन वन देवी को साक्षात पाकर अछरू अचंभित रह गया और वह माता के बताये स्थान पर उस कुण्ड के पास पहुँता का देखा कि पत्थर में लावे के कटाव से बने एक छिद्रनुमा कुण्ड में पानी भरा था जिसे पीकर उसने अपनी प्यास बुझाई और उत्सुकता वश उस कुण्ड में अपनी लाठी डालकर देखी तो पाया कि वह कुण्ड की गहराई का कोई अंत नही है उसकी लाठी भी उसी कुण्ड में लोप हो गई। इस चमत्कार से आश्चर्य में भरे अछरू ने माता की ओर देखा तो उसने मुस्करा कर उसे तालाब के पास जाने को कहा, माता के बताये स्थान पर पहु्रँचने के बाद उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा तालाब के पानी में उसकी लाठी तैर रही थी और उसी समीप उसकी लपता भैसे उसे मिल गई। इस घटना के बाद अछरू यादव का जीवन बदल गया और वह माता की भक्ति में लीन हो गया, लोगों को जब इस चमत्कारी घटना की जानकारी लगी तो दूर दूर से लोग उस स्थान पर अपनी मनौतिया लेकर पहुँचने लगे और माता की कीर्ति पूरे संसार में फैल गई।
माता ने अपने अनन्य भक्त अछरू को ये वरदान दिया कि वह स्वयं उसके नाम से ही पहचानी जाऐंगी इसके बाद उक्त देवी स्थल को सैकड़ों वर्षाे से माता के भक्त अछरू के नाम से अछरू माता के रूप में जाना जाता है। एक पत्थर पर एक छोटी से मढ़िया से शुरू हुई इस सिद्ध स्थल की शुरूआत एक भव्य मंदिर और विशाल मेले तक पहुँच गई है जहाँ प्रतिवर्ष लाखों लोग पहुँचकर माता के दर्शन करते है।
सती माता का आंसू गिरने से बना अछरू शक्ति पीठ
एक अन्य ग्रामीण जनश्रुति के अनुसार अछरू माता का उद्भव सती माता के इस स्थान पर आंसू गिरने से बनेकुण्ड से हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि जब भगवान शिव माता सती की देह आकाश मार्ग से ले जा रहे थे तब माता सती के अंग जिन स्थानों पर गिरे वहा सिद्ध शक्ति पीठों का प्रादुर्भाव हुआ उसी क्रम में इस स्थान पर सती माता का आंसू गिरने के कारण अछरू माता का सिद्ध शक्ति पीठ बना है।
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| Achhru mata Shakti Peeth made by the tears of Sati |
चमत्कारिक कुण्ड पूर्ण करता है भक्तों की मनोकामनायें
अछरू माता मंदिर में पाषाण पर प्राकृतिक रूप से निर्मित जलकुण्ड मंदिर में मनौतिया लेकर आने वाले भक्तों कोप्रसाद प्रदान कर उनकी अभिलाषा के संबंध में संकेत प्रदान करता है। मंदिर में अपनी मनौतिया पूर्ण होने का दावा करने वाले भक्तों की संख्या का आंकड़ा लाखों में है। मंदिर के पंडा ने बताया कि मनौतिया लेकर माता के मंदिर में आने वाले भक्तों की पूजा जब आरंभ की जाती है तो चमत्कारिक कुण्ड मनौतियों को लेकर संकेत प्रदान करता है और कुण्ड के जल में बुलबुले आना आरंभ हो जाते है। फिर चमत्कार स्वरूप उक्त कुण्ड से निकलने वाला प्रसाद जो नीबू, दही, जलेबी, मिष्ठान सहित अन्य सामग्री के रूप में होता है उनकी मनौतियों के संबंध में संकेत देता है।
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| the miraculous Kund of Achhru mata gives prasad |
कई बार भक्तों को निराशा का सामना भी करना पड़ता है और उक्त दिव्य कुण्ड से उनकी मनौती का कोई संकेत प्राप्त नही होता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि भक्तों की ओर से पूजा के दौरान लाई प्रसाद सामग्री उनके द्वारा कुण्ड में डालकर माता को समर्पित की जाती है। माता के चमत्कारिक कुण्ड से मनौतिया पूरी होने की इस अद्भुत कहानियों को लोक गायक एवं ग्रामीण लोकगीतों के रूप में गाकर भी माता के यश का बखान करते है।
भक्त अछरू के वंशज करते है माता की पूजा
माता की अनन्य भक्ति के परिणाम में मिले वरदान के कारण आज भी माता की पूजा अछरू यादव के वंशज ही करते है यह परंपरा सैकड़ों वर्षाे से अनवरत चली आ रही है। उसके वंशज आज भी समीपस्थ ग्राम गोपालपुरा एवं नयाखेड़ा में निवास करते है और पीढ़ी दर पीढ़ी उक्त सिद्ध स्थल पर पंडा के रूप में माता की नियमित पूजा करते चले आ रहे है। मनौतिया लेकर आने वाले भक्तों की चढ़ावा सामग्री वह माता को अर्पित कर देते है और कुण्ड से प्राप्त प्रसाद भक्त को सौप देते है। उनके वंशज चंदन सिंह का कहना है कि उनके परिवार को माता की सेवा के लिए ओरक्षा स्टेट द्वारा कृषि भूमि भी दी गई थी, आज भी उनका वंश माता के प्रति समर्पण भाव से तत्पर रहता है।
मंत्र और विधि विधान से होती है कुण्ड की सफाई
मंदिर के पंडा और प्रबंधन समिति के सदस्यों ने बताया कि नवरात्रि की अष्टमी के दिन माता के चमत्कारिक कुण्ड की सफाई की जाती है यह प्रक्रिया अत्यंत संवेदनशील होने के कारण पवित्रता और धार्मिक नियमों का पूर्ण पालन किया जाता है। इसके लिए उक्त दिवस एक बड़े अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है जिसमें प्राकाण्ड ब्राम्हण भाग लेते है इसमें पूजा, मंत्र उच्चारण और सिंदूर के चढ़ावे के बाद माता के कुण्ड को पवित्र जल से साफ किया जाता है। जिसके बाद सारी सामग्री स्वतः बाहर निकलकर दूर हो जाती है और माता के कुण्ड में स्वच्छ नया जल आ जाता है।
औरंगजेब की सेना से की थी ओरछा धाम की रक्षा
ग्रामीणों का मानना है कि रामराजा सरकार की पवित्र नगरी ओरछा के प्रवेश द्वार के बाहर स्थित अछरू माता मंदिर की माता ओरछा की रक्षा करती है। इसके प्रमाण में इतिहास में दर्ज एक कथानक का हवाला भी दिया जाता है, ग्रामीणों और जानकारों के मुताबिक मुगल बादशाह औरंगजेब ने जब हिन्दुओं के मंदिरों को निशाना बनाया था तब उसकी फौजे ओरछा के प्रवेश द्वार तक पहुँच गई थी परंतु अछरू माता के प्रताप के कारण मुगल फौजे न तो रामराजा सरकार की नगरी में प्रवेश कर पाई थी और न ही उसे कोई नुकसान पहुँचा था। माता की महिमा के कारण ही मुगल फौजों को बैरंग लौटना पड़ा था।
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| aachru mata protected Orcha from Aurangzeb's army. |
कैसे पहुँचे अछरू माता मंदिर
रेल मार्ग से अछरू माता मंदिर झांसी रेलवे स्टेशन से 42 किमी दूर है, झांसी रेलवे स्टेशन से नियमित बस सेवा द्वारा पृथ्वीपुर पहुँचा जा सकता है। पृथ्वीपुर से मंदिर की दूरी महज 5 किलोमीटर है। इसके अतिरिक्त सड़क मार्ग से माता मंदिर टीकमगढ़ झांसी राष्ट्रीय राजमार्ग से होकर पहुँचा जा सकता है। इसकी लोकेशन संबंधी लिंक नीचे दी गई है।




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